विजय त्रिवेदी
योजना आयोग के सदस्य बी के चतुर्वेदी से खास मुलाकात
इच्छाओं
से बनता है तरक्की की रास्ता
उनके
दिमाग में खाका खिंचा हुआ है
पूरे हिंदुस्तान का ,
उसके
आगे बढ़ने की रफ्तार का,
पिछड़े
हुए राज्यों का,
बढ़ते
हुए उद्योगों का ,
घटती
शिशु मृत्यु दर का ,
हिसाब
किताब है आम आदमी की हर साल
बढ़ती आमदनी का ,गांवों
से जो़डती सड़कें,
रोशन
होते घर, स्कूलों
की तादाद और अस्पतालों में
होते इलाज । दफ्तर का कमरा भले ही एयरकंडीशन्ड
हो,लेकिन
जैसलमेर की तपती गर्मी और लेह
लद्दाख पड़ती बर्फ दोनों का
अंदाज़ा उन्हें हैं ,मगर
फिर क्यों ऐसा है कि
इस मुल्क को साठ साल लग गए और अब भी रफ्तार पूरी तरह नहीं पकडी जा सकी है सन 2004 में कैबिनेट सचिव के तौर पर प्रधानमंत्री डा मनमोहन सिंह को सलाह देते रहे बालकृष्ण चतुर्वेदी अब मुल्क की पेंटिंग को रंगीन करने में लगे हैं योजना भवन में बैठकर । चतुर्वेदी योजना आयोग और वित्त आयोग दोनों के सदस्य हैं ।
इस मुल्क को साठ साल लग गए और अब भी रफ्तार पूरी तरह नहीं पकडी जा सकी है सन 2004 में कैबिनेट सचिव के तौर पर प्रधानमंत्री डा मनमोहन सिंह को सलाह देते रहे बालकृष्ण चतुर्वेदी अब मुल्क की पेंटिंग को रंगीन करने में लगे हैं योजना भवन में बैठकर । चतुर्वेदी योजना आयोग और वित्त आयोग दोनों के सदस्य हैं ।
सवाल- मुझे
तो हैरानी होती है ,
12 वीं
पंचवर्षीय योजना के प्लान
में भी आप अभी बुनियादी ज़रुरतों
पर ही फोकस कर रहे हैं । 55
साल
बाद भी आधी आबादी को पेट भर
खाना नहीं मिल रहा ,
गांवों
तक पीने का पानी नहीं पहुंच
रहा ,स्वास्थ्य
औऱ शिक्षा का हाल किसी से छिपा
नहीं है , यानी
कुछ हुआ ही नहीं अभी तक ।
चतुर्वेदी
- ऐसा
कहना गलत होगा ,
बहुत
कुछ हुआ है । हमारी प्रति
व्यक्ति आमदनी बढ़ी है 750
डालर
सालाना से बढ़कर 1100
डालर
हो गई है । सोशल इंडिकेटर बेहतर
हुए हैं शिशु मृत्यु दर घटी
है, उम्र
बढ़ी है आम आदमी की ,
महिलाओं,खासतौर
से गर्भवती महिलाओं की मृत्युदर
में गिरावट आई है ।
उत्तर पूर्व के पिछड़े राज्यों में काफी तेज़ी से विकास हुआ है चाहे वो सिक्किम हो या फिर त्रिपुरा । बीमारु राज्य भी आगे बढ़े हैं । लेकिन हमारे यहां 90 के दशक में आर्थिक सुधार शुरु हए और उसके बाद से रफ्तार ने तेज़ी पकडी है , चीन में 1978 में सुधार शुरु हो गए थे ।
उत्तर पूर्व के पिछड़े राज्यों में काफी तेज़ी से विकास हुआ है चाहे वो सिक्किम हो या फिर त्रिपुरा । बीमारु राज्य भी आगे बढ़े हैं । लेकिन हमारे यहां 90 के दशक में आर्थिक सुधार शुरु हए और उसके बाद से रफ्तार ने तेज़ी पकडी है , चीन में 1978 में सुधार शुरु हो गए थे ।
पत्रिका-
यानी
उससे पहले के चालीस साल में
हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे
तबकि सरकारों ने कुछ किया ही
नहीं । आप जिसे विकास बता रहे
हैं ।यूएनडीपी के ह्यूमन
इंडेक्स में हम 136
नंबर
पर हैं 181 देशों
में , दक्षिण
एशिया में भी सबसे पीछे ।
चतुर्वेदी-
ऐसा
नहीं है । अंग्रेजो़ के बाद
जो मुल्क हमें मिला उसमें कुछ
था ही नहीं कोई इन्प्रा स्ट्रक्चर
नहीं था, बिजली
नहीं थी , साक्षरता
नहीं थी , सड़कें
,पानी
कुछ भी तो नहीं था तो शुरुआती
दौर पर उस पर बहुत काम हुआ और
इसलिए उस वक्त सरकारी उपक्रमों
को शुरु किया गया ।
तब प्राइवेट कंपनियां बड़े जोखिम उठाने के लिए तैयार नहीं थी , अब भी बड़े जोखिम वाले काम सरकारी कंपनियां ही कर रही हैं और जहां तक ह्यूमन इंडेक्स का सवाल है इसमें बहुत सारे ऐसे बिंदू होते हैं जिन पर थोड़ा बहुत फर्क ही बड़ा अंतर डाल देता है और ये इंडेक्स विकसित देशों को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं ।लेकिन हकीकत ये है कि मुल्क ने बड़ी तरक्की है और इसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता ।
तब प्राइवेट कंपनियां बड़े जोखिम उठाने के लिए तैयार नहीं थी , अब भी बड़े जोखिम वाले काम सरकारी कंपनियां ही कर रही हैं और जहां तक ह्यूमन इंडेक्स का सवाल है इसमें बहुत सारे ऐसे बिंदू होते हैं जिन पर थोड़ा बहुत फर्क ही बड़ा अंतर डाल देता है और ये इंडेक्स विकसित देशों को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं ।लेकिन हकीकत ये है कि मुल्क ने बड़ी तरक्की है और इसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता ।
पत्रिका-
आपकी
बात मान लें कि तरक्की बहुत
हुई है हमारे मुल्क में और आम
आदमी की ज़िंदगी बेहतर हुई
है ,उसकी
आमदनी बढ़ी है तो फिर मनरेगा
और खाद्य सुरक्षा बिल की ज़रुरत
क्या है ।
चतुर्वेदी
- देखिए
जितनी तेजी से तरक्की होती
है उतनी ही इच्छाएं बढ़ती हैं
और ये अच्छी बात है कि इच्छाएं
बढ़ रही हैं क्योंकि उसी से
तरक्की का रास्ता बनता है .
अगर
आदमी संतुष्ट हो जाए तो फिर
काम करने की ज़रुरत ही क्या
पड़ेगी । आप आंकडें देखिए कि
हमारे बीमारु राज्यों ने भी
तरक्की की है जिसमें राजस्थान,
मध्यप्रदेश,
बिहार
जैसे राज्य शामिल हैं यहां
विकास की दर देश की दर से भी
ज़्यादा है ।
पत्रिका-
फूड
सिक्योरिटी बिल मुल्क की 67
फीसदी
आबादी को भोजन की गारंटी देने
के लिए बनाया गया है तो जिस
मुल्क में दो तिहाई आबादी को
भरपेट भोजन नहीं मिल रहा हो
, उसे
तरक्की कहते हैं आप ।
चतुर्वेदी
- इसका
मतलब ये नहीं है कि 67
फीसदी
आबादी को भोजन नहीं मिल रहा
। इस योजना का मायने है कि हरेक
को भोजन मिल पाए । इसमें वे
लोग भी शामिल हैं जो भोजन का
इंतज़ाम कर सकते हैं ।
पत्रिका-
मतलब
जब आप बीपीएल की आंकड़ा या
आधार तय नहीं कर पाए तो आपने
कहा कि सबको ही बांट दो ।यदि
ये योजना सिर्फ बीपीएल के लिए
होती तो सरकार को भी कम खर्च
करना पड़ता और बीपीएल को अनाज
भी ज़्यादा और सस्ते में मिल
सकता था ।
चतुर्वेदी
- कुछ
राज्यों में बीपीएल को लेकर
मतभेद हैं कोई अपने सोश्यो
इकानमी के आधार पर बीपीएल रखना
चाहता है तो कोई दूसरे आधार
पर । हमने तेंदूलकर कमेटी को
आधार बनाया है ।ये बात ठीक है
कि सिर्फ बीपीएल के लिए रखा
जाता तो सरकार को कम खर्च करना
पड़ता लेकिन ज्यादा लोगों को
योजना का फायदा मिले इसमें
क्या बुराई है ।
पत्रिका
- कुछ
लोग तो इसे वोट सिक्योरिटी
बिल कहते हैं इसलिए आप ज़्यादा
से ज़्यादा लोगों को देना
चाहते हैं ।
चतुर्वेदी
- मैं
राजनीतिक व्यक्ति नहीं हूं
,इसलिए
ऐसे सवाल का जवाब मैं नहीं दे
सकता ।
पत्रिका-
यूपीए
सरकार के कृषि मंत्री ही इस
योजना के खिलाफ हैं ,
मुलायम
सिंह ने इसे किसान विरोधी कहा
है ,आपका
क्या कहना है ।
चतुर्वेदी
- हर
योजना या कार्यक्रम पर सबकी
अलग अलग राय होती है और हर राय
ना तो पूरी तरह सही होती है और
ना ही पूरी तरह गलत । अब सरकार
को फैसला लेना होता है योजना
को लागू करने के लिए ।
कृषि मंत्री शायद इसलिए कह रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि अनाज का इतना बड़ा भंड़ार हमेशा मुमकिन नहीं है । अकाल या विपरीत परिस्थितियों में यदि इतना अनाज नहीं उपलब्ध होगा तब क्या करेंगें।
मुलायम सिंह जी की राय शायद इसलिए हो कि उन्हें लगता होगा कि इससे किसान को अपने अनाज का ज़्यादा दाम नहीं मिल पाएगा क्योंकि सरकार ही सबसे बड़ी खरीदार होगी और वो कम दाम पर अनाज खरीदेगी ।
कृषि मंत्री शायद इसलिए कह रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि अनाज का इतना बड़ा भंड़ार हमेशा मुमकिन नहीं है । अकाल या विपरीत परिस्थितियों में यदि इतना अनाज नहीं उपलब्ध होगा तब क्या करेंगें।
मुलायम सिंह जी की राय शायद इसलिए हो कि उन्हें लगता होगा कि इससे किसान को अपने अनाज का ज़्यादा दाम नहीं मिल पाएगा क्योंकि सरकार ही सबसे बड़ी खरीदार होगी और वो कम दाम पर अनाज खरीदेगी ।
पत्रिका-
आम तौर
पर योजना आयोग पर आरोप लगाया
जाता है कि आप एयरकंडीशंड कमरो
में बैठकर योजनाएं बनाते हैं
और आपको इस बात का अहसास ही
नहीं होता कि मुल्क में जैसलमेर
और श्रीनगर से लेकर कोच्चि
तक अलग अलग ज़रुरते हैं लेकिन
आप सबके लिए एक जैसी योजना बना
देते हैं ।
चतुर्वेदी
- ये
सही है कि पहले इस तरह के आरोप
कुछ लोग लगाते रहे हैं ,हालांकि
वह सही नहीं है क्योंकि हमारे
पास हर क्षेत्र के विशेषज्ञों
की राय होती है हर मसले पर
,लेकिन
अब हमने एक बड़ा बदलाव किया
है जो इस 12 वीं
पंचवर्षीय योजना से लागू हो
जाएगा ।
इस बार से केन्द्र की मदद से चलने वाली योजनाओं में राज्यों को 20 फीसदी और फ्लैगशिप कार्यक्रमों में दस फीसदी फ्लेक्सी फंड मिलेगा यानी इस पैसे का इस्तेमाल वे उस योजना में अपने राज्य या इलाके की ज़रुरत के हिसाब से कर सकेंगें और मैं समझता हूं कि इसके बाद इस आरोप का कोई मायने नहीं रह जाएगा ।
इस बार से केन्द्र की मदद से चलने वाली योजनाओं में राज्यों को 20 फीसदी और फ्लैगशिप कार्यक्रमों में दस फीसदी फ्लेक्सी फंड मिलेगा यानी इस पैसे का इस्तेमाल वे उस योजना में अपने राज्य या इलाके की ज़रुरत के हिसाब से कर सकेंगें और मैं समझता हूं कि इसके बाद इस आरोप का कोई मायने नहीं रह जाएगा ।
पत्रिका
- योजनाओं
का सही फायदा तब होता है जब
आपके पास कोई विज़न हो यानी
आप कब और कहां पहुंचना चाहते
हैं । तब के राष्ट्रपति एपीजे
अब्दुल कलाम ने विजन 2020
बनाया
था ,लेकिन
उस पर कोई काम नहीं हुआ ।
चतुर्वेदी
- डा
कलाम ने जो विजन डाक्यूमेंट
बनाया था तो वो बहुत ही अच्छा
विजन डाक्यूमेंट है ।लेकिन
विजन और प्लान में फर्क होता
है । विजन डाक्यूमेंट मौटे
तौर पर कोई रास्ता दिखाता है
जबकि योजनाएं मंज़िल तक पहुंचने
में मदद करती हैं । फिर एक अनुभव
ये रहा है कि बहुत लंबे विजन
डाक्यूमेंट से ज्यादा फायदा
नहीं होता मसलन 2050
का
विजन डाक्यूमेंट बनाने का
कोई मतलब नहीं है ।
पत्रिका-
गुजरात
के मुख्यमंत्री नरेन्द्र
मोदी ने कहा कि इटस नाट द
गवर्नमेंट बिजनिस टू डू बिजनिस
। तो क्या आपको सरकारी उपक्रमों
की ज़रुरत लगती है ,क्यों
है सरकार बिजनिस में ।
चतुर्वेदी
- सरकारी
उपक्रम इसलिए शुरु किए गए थे
क्योंकि तब बड़े निवेश और
बड़े जोखिम में प्राइवेट
सेक्टर आने को तैयार नहीं था
और आज बी कमोबेश यही हालात है
। पावर सेक्टर है,
आइल
सैक्टर है ,
न्यूक्लियर
एनर्जी है और भी बहुत से क्षेत्र
है तो उसमें सार्वजनिक उपक्रम
चाहिए,वरना
देश हित कैसे सधेगा ।और इससे
काम्पटीशन भी रहता है ,जिसका
फायदा आम आदमी को ही होता है
।
पत्रिका-
होटल
चलाना कौन सा जो़खिम का काम
है,लगता
है कि सिर्फ अफसरों और मंत्रियों
के आराम के लिए चला रहे हैं
ऐसे कार्पोरेशन ।
चतुर्वेदी
- ये
सही है कि बहुत से सार्वजनिक
उपक्रम ऐसे हैं जिनकी अब जरुरत
नहीं है और उन्हें बंद किया
जा सकता है , या
करना चाहिए,लेकिन
फिर भी सार्वजनिक उपक्रमों
की अपनी ज़रुरत है और इस कान्सेप्ट
को पूरी तरह खारिज नहीं किया
जा सकता ।
पत्रिका-
आखिरी
सवाल , लोग
तो ये भी कहते हैं कि योजना
आयोग की क्या ज़रुरत है ,इसे
भी बंद कर देना चाहिए , आप
क्या सोचते हैं ।
चतुर्वेदी
- योजना
आयोग बहुत अहम काम कर रहा है
। देश के विकास के लिए योजनाएं
बनाना, मुल्क
की जरुरतों को समझना और उसके
मुताबिक सरकार को राय देने
के अलावा राज्यों के विकास
में भी मदद करता है । मुझे लगता
है कि योजना आयोग की बहुत ज़रुरत
है मुल्क को आगे बढ़ाने के
लिए ।
समाप्त
विजय त्रिवेदी
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